संस्कृत में सरस्वती वंदना

संस्कृत में सरस्वती वंदना प्रस्तुत  है –

यह वंदना मैंने स्कूल में सीखी थी   …. इस वन्दना में माँ सरस्वती की पूजा अर्चना है, अक्षत चन्दन लगाया जा रहा है, धूप दीप  जलाए जा रहे है, माला चढ़ाई जा रही है, शंख बजाया जा रहा है  चरणों में पुष्प रख कर नतमस्तक हुआ जा रहा है  …..

अक्षत चन्दन मत्तशील मिवते , चन्द्रोज्वलम शीतलम
दीपोयम  प्रतिभा प्रभाव इवते , कान्तस्थिरम दीप्यते
दूपोयम तव कीर्ति संचय इव , तव मोरदर्दिशों  व्यष्णुते
माल्यम निर्मल कोमलम , तव मनस्तुल्यम  समुद्धास्ते

कंबुस्थापित मेत दम्बु सरसम , काव्यम त्वत्रियम यथा
पुष्प श्रेलिरियम गुणा लिरिवते , पश्यज्वना कर्षिणा
अर्ध्यम ताव दिदम क्रितम तव कृते , दूर्वा क़ुराध्यम नितम
ननवेतत प्रति गृह्यता करुणया

स्वसत्यसतुते श्राश्वतम  !

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statue of equality – समता मूर्ति ….. आचार्य रामानुज

statue of equality – तेलंगाणा, हैदराबाद, शमशाबाद हवाई अड्डे से कुछ दूरी पर है  ….. स्थानीय भाषा में इसे कहा जाता है – समता मूर्ति ….. आचार्य रामानुज – दार्शनिक, समाज सुधारक, संत, विष्णु भक्त कवि ……

बङा लॉन पार करने के बाद घेरे में है छोटे-छोटे 108 मंदिर इन छोटे मंदिरों में विष्णु की वैसी ही मूर्तियाँ है जो देश भर में फैले और नेपाल में स्थित विष्णु मंदिरों में है जिनमें तिरूमला, रंगानाथ, जोशीमठ, द्वारिका, मथुरा, मुक्तिनाथ भी शामिल है यानि इस एक ही स्थान पर हम सभी विष्णु मंदिरों के दर्शन कर सकते है ….

भीतर मुख्य स्थल एक बङा हॉल है जिसमें 90 स्तम्भ है जो गोलाई में चार घेरे में है। भीतर के तीन घेरे 8-8 स्तम्भों के है और शेष बाहरी घेरे में है जिन पर आचार्य रामानुज के जीवन की झांकियाँ है। ये स्तम्भ तीसरी मंज़िल तक है। पहली मंज़िल पर बीच में तानपुरा लिए बैठे हुए रामानुज आचार्य की सोने की मूर्ति है। इन स्तम्भों पर भी स्वर्णिम आभा का प्रकाश है जिससे सारा वातावरण स्वर्णिम लगता है। तीसरी मंज़िल पर रामानुज आचार्य की 216 फीट ऊँची मूर्ति है जो बाहर से भी दूर तक दिखाई देती है –

मूर्ति के आधार पर गोलाई में हाथी की मूर्तियाँ है जिनके मुख से फव्वारे निकलते है।

यहाँ से नीचे आने पर फाउंटेन है जहाँ लाइट और साउंड शो होता है। शो का आनन्द ले कर बाहर आते समय प्रसाद दिया जाता है। आगे हाल में भोजनालय है और कुछ स्टॉल भी है।

पूरे निर्माण में काकतीय, चोल, पल्लव, विजयनगर की शैली में शिल्पकारी है।

कुछ देर आध्यात्मिक वातावरण में आनन्द लेने के बाद हम लौट आए।  

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नंदकिशोर आचार्य – जन्मदिन मुबारक !

साठ सत्तर के दशक में नन्द किशोर आचार्य जी हिन्दी काव्य जगत में उभरे और सत्तर के दशक के अंत में अज्ञेय जी द्वारा सम्पादित  चौथा सप्तक के चौथे कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए  ….
वर्ष 1945  में 31 अगस्त को नन्द किशोर जी का जन्म हुआ। यूँ तो पारिवारिक वातावरण असाहित्यिक और पौराणिक रहा किन्तु आप इस से दूर रहे। राजनीति के क्षेत्र में भी आप सक्रिय रहे, सदैव ही आपने समाजवादी आंदोलन का समर्थन किया। इसी से काव्य को भी आपने “सत्यान्वेषण ” और “आत्मान्वेषण ” ही नहीं “आत्ममंथन ” माना है और उसे जानने की प्रक्रिया कहा है। चौथा सप्तक में  अपने वक्तव्य में कविता के संबंध में कहते है कि कविता की प्रक्रिया शब्दों के माध्यम  से अनुभूति के स्तर पर सत्य के उद्घाटन की प्रक्रिया है। काव्य को समझाने के लिए नन्द किशोर जी ने यह पंक्तियाँ लिखी –
नहीं, कविता रचना नहीं
सुबूत है
कि मैनें अपने को रचा है
मैं ही तो हो गया होता हूँ शब्द  …
यही प्रमाण है कि आधुनिक कविता भोगे हुए यथार्थ की अभिव्यक्ति है।

नंदकिशोर आचार्य जी की कविताओं में यथार्थ का चित्रण भी है –
उपकरण शीर्षक कविता में नंदकिशोर आचार्य ने आधुनिक समाज में मानव के एकाकीपन की भयावहता दर्शाई –
पत्थर क्या नींद से भी
ज्यादा पारदर्शी होता है
कि और भी साफ दिख जाता है
उस में भी अपना सपना
तुम जिसे उकेरने लगते हो-
शिल्पी जो ठहरे !

पर क्या होता है उन टुकड़ों का
जिन्हें तुम अपने उकेरने में
पत्थर से उतार देते हो ?
और उस मूरत का जो-जैसी भी हो
तुम्हारी ही पहचान होती है
पत्थर की नहीं ?

उन में क्या सिसकता नहीं रहता होगा
पत्थर का कोई
क्षत-विक्षत सपना अपना ?
हाँ, पत्थर तो उपकरण ठहरा !
उस का अपना क्या ?
सपना क्या ?

तो क्या वे
जिन का अपना नहीं होता कुछ
उपकरण हो जाते हैं
मूरत करने को किसी और का सपना !

आपकी रचनाओं में भविष्य के प्रति आशा भी है  –
तो तुम्हें क्या –  रचना — मे क्रान्तिकारी चेतना से परिवर्तन की संभावना जताते हुए कल्पना की –
कि लोगों को सिर्फ वह दीखा
कि वह अब वहाँ नहीं था
सङक पर दीख रहा था कुछ ख़ून सरीखा
सारे जुलूस का सारा शोर
अपने मे  एक पल भी नहीं घोल पाया
हाथी पर सवार राजा का सिर
ज़मीन मं गङा जा रहा था

कविताओं में प्रेम की अभिव्यक्ति भी है –
तुम्हारे और मेरे बीच – कविता में आधुनिक जीवन में बिगङते रागात्मक संबंधों की चर्चा की –
तुम्हारे और मेरे बीच एक कपोत उङता है
राग कपोत पर उसके पंख झुलस गए है
और चोंच से खुजला खुजला कर
उसने अपने गले में धान कर लिए है
तुम्हारे और मेरे बीच रह गई अब
गहरी खाइयों वाली बर्फ की एक विशाल नंगी झील
जिसके नीचे दबे हमारे सूर्य में
वह ताव नहीं जो इसे पिघला सके
और बर्फ है कि गिरती ही जा रही है

आपकी रचनाओं का कला पक्ष भी मज़बूत है –  उपमा अलंकार देखिए  –
बाहें उठाए अर्ध्य देते ऋृषियों सरीख़े चीङ

नन्द किशोर आचार्य जी को बहुत – बहुत  बधाई !

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