अप्रैल माह में दक्षिणभारत की यात्रा के समय रामेश्वरम भी गया था। उन तैरते पत्थरों को भी देखा था। ‘समय’ जैसा कह रहे हैं वह ‘समुद्रफेन’ नहीं है। समुद्रफेन औषधियों के रूप में भी प्रयुक्त होता है और जड़ी-बूटी बेंचने वालों के यहाँ मिलता है। यह सही है कि मधुमक्खी के छत्ते सरीखा दिखनें वाल वह पत्थर, कोष युक्त है। किन्तु समुद्रफेन से कहीं अधिक भारी है। समुद्रफेन अन्ततः जमा हुआ नमक ही तो है और लगातार पानी में रहनें पर पत्थर की तरह कठोर नहीं रह सकता। इस पर वैज्ञानिक शोध करना चाहिये।
I thanking you again and again for this information. I want to talk with you so please contact me on our mail ID is shashi_nhit@rediffmail.com if it will possible then pls send your mobile number with name.
Mr samay , meri ray mein ek MANAW bhi nahi janata hai ki usaka ASALI B AAP AUR MA kaun hai to kya apne BAAP , MA KE existence bhool jayega ,yahi haal apke PAGAL SOCH ka hai BHAGWAN bhi apka BHALA n ahi kar sakata
तिल को पहाड साबित करने की साजिश,,,पेट में मेल कुचैल,, रेत,, कंकर से काफी बडी-बडी पत्थरी बन जाती हैं,,, ऐसे ही समुद्र में आलतु फालतु चीजों के जुडने से कुछ पुल जैसा दिखने लगा है,, ”क्या बालू की भीत पर खड़ा है हिन्दू धर्म?” डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात’ का लिखा लेख ”कहां से टपका रामसेतु” इस विषय पर पढते हैं तो पता चलता है कि यह नाम ”राम सेतु” शब्द तक किसी ग्रंथ में कहीं नहीं मिलता,, कंकर-पत्थ्र जम-जम कर जो आज कहीं है कहीं नहीं तो कहीं 10 फुट चौडी पटटी दिखायी दे जाती है इसको हिन्दू ग्रंथों का 10 योजन अर्थात 128 किलोमीटर चौडा पुल कहा जा रहा,, लंबाई की बात करें तो श्रीलंका से हिन्दुस्तान की इस हिस्से कुल दूरी 30 किलोमीटर लम्बी है जबकि ग्रंथ में पुल की 1468 किलोमीटर लिखी है,,,
विविदित पुल की लंबाई 30 किलोमीटर ,चौडाई कहीं 10 से कहीं 30 फुट तक ,जबकि रामायण के अनुसार-
चौडाई 128 किलोमीटर
लंबाई 1288 किलोमीटर
वानरों ने पहले दिन 14 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और 5वें दिल 23 योजन लंबा पुल बाधा इस तरह नल ने 100 योजन अर्थात 1288 किलोमीटर लंबा पुल तैयार किया, पुल 10 योजन अर्थात 128 किलोमीटर चौडा था,
दश्योजनविस्तीर्ण शतयोजनमायतम्
दद्टशुर्देवरांधर्वा- नलसेतुं सुदुष्करम
–वाल्मिकी रामायण 6/22/76
लम्बाई-
वाल्मिमिकी रामायण के अनुसार यह नलसेतु 100 योजन अर्थात 1288 किलोमीटर लंबा था (संस्कृत इंगलिश डिक्शनरी के अनुसार 1 योजन 8-9 मील का होता है, यहां हम ने 8 मील मान कर यह किलोमीटर में 1288 का आंकडा दिया है, यदि 9 मील का योजन मानें तो 100 योजन 1468 किलोमीटर होगा) पर अब जो पुल है वह तो केवल 30 किलोमीटर है, शेष 1258 अथवा 1438 किलोमीटर है कहां है्,
पानी में तैरते पत्थरों का सच-
floating stones [Pumice]
उज्जैन साइंस कॉलेज के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ आर एन तिवारी के अनुसार ज्वालामुखी फटने के बाद जब लावा जमता है तो ऐसे पत्थर बनते हैं इनका घनत्व कम होने के कारण यह पानी में तैर सकते हैं,,,,, एसे पत्थरों को प्यूमिस स्टोन Pumice कहा जाता है,
वहीं भौमिकी अध्ययनशाला विक्रम विश्वविद्यालय के अध्यक्ष डॉ़ प्रमेंद्र देव ने बताया कि बसाल चटटानों के कारण ऐसे पत्थर बनते हैं, सतह पर छिद्र होने के कारण वजन कम होता है इस कारण यह पानी पर तैर सकते हैं , अधिक जानकारी के लिए ,, यू टयूब पर Pumice stone सर्च करके देखें
“रामसेतु” पर
1961 से लेकर 1996 तक जितनी भी समितियाँ बनी थीं, सबने मण्डपम और धनुषकोडि के बीच की जमीन को काटते हुए नहर बनाने का सुझाव दिया था… किसी ने भी “रामसेतु” को क्षतिग्रस्त करने की बात नहीं कही थी!
मगर 2001 में भारत सरकार ने आश्चर्यजनक एवं रहस्यमयी तरीके से “रामसेतु” को तोड़ते हुए नहर बनाने का आदेश दिया!
मैं सोच रहा हूँ- क्या यह वही समय था, जब अमेरिका ने ‘नासा’ के माध्यम से “रामसेतु” के नीचे दबे “खनिज” का पता लगा लिया था???
*****
हाल ही में भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि चूँकि “सेतु समुद्रम परियोजना” पर 829 करोड़, 32 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं, इसलिए अब इसे बन्द नहीं किया जायेगा।
कुछ समय पहले कॉन्ग्रेस सरकार ने अपने एक हलफनामे में रामजी को “काल्पनिक” बताया था।
एक हलफनामे में यह भी कहा था कि रामायण के अनुसार चूँकि रामजी ने खुद ही इस पुल को तोड़ दिया था, इसलिए इसे तुड़वाने में कोई हर्ज नहीं है।
कितनी आश्चर्यजनक बात है! कहाँ तो भारत सरकार को इस पुल को “विश्व धरोहर” में शामिल करने के लिए यूनेस्को मेंअपील करनी चाहिए और कहाँ सरकार इसे नष्ट करने पर तुली है! ध्यान रहे कि सरकार द्वारा ही गठित ‘पचौरी समिति’ ने इस परियोजना परआगे न बढ़ने की सलाह दे रखी है- क्योंकि यह फायदेमन्द साबित नहीं होगी!
इस परियोजना के तहतभारत-श्रीलंका के बीच (धनुषकोडि और तलईमन्नार के बीच) पानी में डूबा हुआ जो पुलहै, उसे तोड़कर जलजहाजों के आवागमन के लिए कुल 89 किलोमीटर लम्बी दो नहरें बनायी जानी हैं। यह चूना-पत्थर की चट्टानों से बना प्रायः 30 किलोमीटर लम्बा पुल है। इसे “एडम्स ब्रिज” (बाबा आदम के जमाने का पुल) भी कहा जाता है। इन नहरों के बन जाने पर भारत के पूर्वी व पश्चिमी तटों के बीच आने-जाने वाले जलजहाजों के करीबन 30 घण्टे और 780 किलोमीटर बचेंगे, जो आज श्रीलंका का चक्कर लगाने में खर्च होते हैं।
इसी पुल के बारे में मान्यता है कि श्रीरामचन्द्र जी ने इसे श्रीलंका पर चढ़ाई करने के लिए बनाया था और रावण को हराकर, सीता को लेकर भारत लौटने के बाद इसे तोड़ भी दिया था। इस प्रकार, इस पुल के साथ भारतीयों की आस्था बहुत ही गहरे रुप से जुड़ी हुई है।
मामला सर्वोच्च न्यायालय में है और वहाँ बड़ी-बड़ी बहस, बड़े-बड़े तर्क-वितर्क हो रहे है। यहाँ हम एक सामान्य भारतीय के नजरिये से पूरे मामले को देखने की कोशिश करते हैं।
***
सबसे पहले हम “पूर्वाग्रहों से रहित होकर” सोच-विचार करते हैं। ऐसा करने पर हम पायेंगे कि “रामसेतु” एक “प्राकृतिक” संरचना ही होनी चाहिए। हजारों साल पहले जब समुद्र का जलस्तर कुछ मीटर नीचा रहा होगा, तब इस संरचना का बड़ा हिस्सा जल से बाहर रहा होगा। फिर भी, एक अच्छा-खासा बड़ा हिस्सा जल में डूबा हुआ होगा।
श्रीरामचन्द्रजी कीसेना ने इन्हीं “डूबे हुए” हिस्सों पर पत्थरों को कायदे से जमाकर तथा कुछ खास तरीकों से बाँधकर इस प्राकृतिक संरचना के ऊपर एक प्रशस्त “पुल” तैयार किया होगा, जिससे होकर एक बड़ी सेना गुजर सके। जहाँ तक पूल की लम्बाई – चौड़ाई की बात है उस समय मापन की इकाई योजन थी जो आज के हिसाब से समुद्र के इस छोर से उस छोर यानी श्रीलंका तक ठीक है l
जब नल और नील-जैसे इंजीनियरों की देख-रेख में सैनिक या मजदूर सही जगह पर पत्थरों को डाल रहे होंगे, तब ये पत्थर समुद्र की अतल गहराईयों में डूब नहीं जाते होंगे, बल्कि जल के नीचे की प्राकृतिक संरचना के ऊपर टिक जाते होंगे। इस प्रकार, पत्थरों की पहली, दूसरी, तीसरी, या चौथी परत डालते ही वे जल के ऊपर नजर आने लगते होंगे। या उस समय के इंजीनियर नल – नील कूछ तैरने वाले पत्थरो को खोजें हों और पानी में डालने से पूर्व श्रद्धावश राम लिखे होंगे और तैरने पर आम सैनिकों या मजदूरों को यह किसी चमत्कार से कम नहीं लगता होगा कि पत्थर समुद्र की अतल गहराई में डूब नहीं रहे हैं। तभी से “पत्थरों के तैरने” की सच्चाइ या किंवदन्ति प्रचलित हो गयी होगी।
हजारों वर्षों बाद लहरों के आघात से “जमे-जमाये और बँधे हुए” ये पत्थर अपनी जगह से खिसक कर गहराई में डूब गये होंगे, जबकि मूल प्राकृतिक संरचना ज्यों की त्यों बनी रही होगी। समय के साथ समुद्र का जलस्तर भी बढ़ गया होगा। तब से इस प्राकृतिक संरचना का ज्यादातर हिस्सा जल के नीचे ही है।
***
अब हम प्रचलित मान्यताओं की बात करते हैं। सर्वाधिक प्रचलित मान्यता के अनुसार रामजी आज से 17 लाख, 50 हजारसाल पहले हुए थे। संयोगवश, इस सेतु की आयु भी 17 लाख, 50 हजार साल ही आंकी गयी है। इस मान्यता के तहत पूरे सेतु को ही “मानव निर्मित” बताया जाता है। अर्थात्, रामजी की सेना ने इस पुल को बनाया था।
हालाँकि रामजी के समय को लेकर बहुत सारी मान्यतायें हैं। “मनुस्मृति” में दी गयी जानकारी (24 वें महायुग केत्रेतायुग के समाप्त होने में जब लगभग 1041 वर्ष शेष थे, तब श्रीरामजीका जन्म हुआ था) के आधार पर शोध करने पर पाया जाता है कि आज (विक्रम संवत्) से लगभग 1 करोड़, 81 लाख, 50 हजार, 15o वर्ष पूर्व रामजीका जन्म हुआ था।
एक आधुनिक मान्यता इधर कुछ समय सेप्रचलित हो रही है, जिसके परिणाम ऊपर वर्णित “पूर्वाग्रह-रहित” विचारोंसे मेल खाते हैं। ‘इंस्टीच्यूट ऑव साइंटिफिक रिसर्च ऑन वेदाज’ (संक्षेप में “I-SERVE”, वेबसाइट- http://serveveda.org) के वैज्ञानिकों ने आदिकवि बाल्मिकी द्वारा रामायण में वर्णित रामजीके जन्म के समय के ग्रहों-नक्षत्रों की स्थिति (भगवान राम के जन्म केसमय सूर्य, मंगल, गुरु, शुक्र तथा शनि उच्चस्थ थे और अपनी-अपनी उच्च राशि क्रमशः मेष, मकर, कर्क, मीन और तुला में विराजमान थे।) को “प्लेनेटेरियम गोल्ड” नामक सॉफ्टवेयर में डालकर देखा, तो पाया कि कप्म्यूटर 10 जनवरी, 5114 ईसा पूर्व की तिथि तथा अयोध्या का स्थान बता रहा है। यानि रामचन्द्र जी का जन्म आज से 7,127 साल पहले अयोध्या में हुआ था- 10 जनवरी को। ध्यान रहे- यह “सौर कैलेण्डर” की तिथि है। इस तिथि को एक दूसरे सॉफ्टवेयर की मदद से “चन्द्र कैलेण्डर” में बदला गया, तो तारीख निकली- चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष का नौवाँ दिन और समयनिकला- दोपहर 12 से 1 के बीच। यह वही तारीख है, जब भारत में “रामनवमी”मनायी जाती है!
***
नेशनल इंस्टीच्यूट ऑव ओस्नोग्राफी, गोआ के वैज्ञानिक डॉ. राजीव निगम कहते हैं कि 7000-7200 साल पहले समुद्र का जलस्तर आज के मुकाबले 3 मीटर नीचा था। संयोग से, आज इस पुल का ज्यादातर हिस्सा समुद्र की सतह से तीन मीटर ही नीचे है। यानि रामजी के जन्म की 5114 ईस्वीपूर्व वाली तारीख अगर सही है, तो रामजी ने जब श्रीलंका पर चढ़ाई की होगी, तब इस पुलका ज्यादातर हिस्सा पानी से ऊपर ही रहा होगा- कुछ डूबे हुए हिस्सों पर ही पत्थरोंको जमाकर प्रशस्त पुल तैयार किया गया होगा।
जियोलॉजिकल सर्वे ऑव इण्डिया के पूर्व निदेशक डॉ. बद्रीनारायण (जिनके नेतृत्व में ‘सेतुसमुद्रम शिपिंगचैनल प्रोजेक्ट’ के भूगर्भशास्त्रीय पक्षों का अध्ययन किया गया था) के अनुसार, रामसेतु एक प्राकृतिक संरचना है, जिसका ऊपरी हिस्सा मानव-निर्मित है, क्योंकि समुद्री बालू के बीच में पत्थर, मूंगे की चट्टानें और बोल्डर पाये गये। इस अध्ययनमें न केवल पुल के दोनों किनारों को अपेक्षाकृत ऊँचा पाया गया था, बल्कि यहाँ मेसोलिथिक-माइकोलिथिक उपकरण भी पाये गये थे, जिससे पता चलता है कि 8000-9000 सालपहले इस पुल से होकर सघन यातायात होता था। रामजी के लौटनेके बाद भी 3,000 वर्षों तक इस पुल से होकर आवागमन होता था- ऐसे सबूत पाये गये।
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अब बात पर्यावरण की। चूँकि यह एक प्राकृतिक संरचना है और लाखों साल पुरानी है, इसलिए जाहिर है कि इसके आस-पास पलने वाले समुद्री जीव-जन्तुओं, वनस्पतियों इत्यादि ने खुद को यहाँ की खास स्थिति के हिसाब से ढाल लिया है। यहाँ के मूँगे खास तौर परप्रसिद्ध हैं। ऐसे में, इस संरचना में यदि तोड़-फोड़ की जातीहै और यहाँ से जलजहाजों का आवागमन शुरु होता है, तो यहाँ पाये जाने वाले जीव-जन्तुओं, मूँगों तथा वनस्पतियों के अस्तित्व पर संकट मँडराने लगेगा- इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए। इतना ही नहीं, आस-पास के लाखों मछुआरों का जीवन-यापन भी प्रभावित होगा।
यह भी कहा जाता है कि यह संरचना ‘सुनामी’ की लहरों को रोकती हैं।
***
कहने का तात्पर्य यहहै कि रामजी को एक काल्पनिक चरित्र मानते हुए या रामजी द्वारा इस सेतु को बनाने, या प्राकृतिक संरचना पर सेतु बाँधने की बात को माइथोलॉजी बताते हुए सिर्फ जलजहाजोंके आवागमन के लिए एक “शॉर्टकट” बनाने के उद्देश्यसे करोड़ों भारतीयों की भावना को ठेस पहुँचाना कोई बुद्धिमानी नहीं है। न ही पर्यावरण की दृष्टि से लाखों साल पुरानी इस संरचना में तोड़ना उचित माना जायेगा।
हाँ, अगर “आस्था एवं विश्वास” शब्दों से ही नफरत रखने वाले कुछ खास लोग इसे तोड़ने की जिद ठान लें, तो यह अलग मामला बन जाताहै। इसी प्रकार, अगर कुछ लोग सिर्फ अपना मुनाफा देखें और इसकी परवाह बिलकुल न करेंकि हमें आनेवाली नस्लों के लिए भी पर्यावरण को रहने लायक बनाये रखना है, तो फिर अलग बात है।
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लगे हाथ इस मामले में ‘राजनीति’ की बात भी हो जाय। ऐसी बात कही जा रही है कि काँग्रेस सरकारने इस परियोजना को बनाया है और भाजपा इसके सख्त खिलाफ है। वास्तव में, यह मामला काफी पुराना है और इस मामले में सारी राजनीतिक बिरादरी साथ-साथ है।
“मन्नार कीखाड़ी” से होकर जलजहाजों के लिए रास्ता बनाने की परिकल्पना 1860 में जन्मी थी, जब अल्फ्रेड डी. टेलर नामक एक अँग्रेज ने ऐसा सोचा था। आजादी से पहले इस परिकल्पनाको साकार करने की दिशा में 9 समितियाँ बनीं और आजादी के बाद 5 समितियाँ। हर समिति ने ‘धनुषकोटि’ और ‘मण्डपम’ के बीच की जमीन को काटकर नहरबनाने का सुझाव दिया। 1956, 1961, 1968, यहाँ तक कि 1996 की रिपोर्ट में भी “रामसेतु” को तोड़ने का जिक्र नहीं था।
मगर आश्चर्यजनक रुप से 2001 में भारत सरकार ठीक उसी प्रोजेक्ट को मान्यता देती है, जिसमें “रामसेतु” को तोड़ते हुए नहरों का निर्माण होना था। क्या उन्हीं दिनों अमेरिका अपनी अन्तरिक्ष संस्था ‘नासा’ के माध्यम से “रामसेतु” पर शोध कर रहा था- कि इसकी तह में कौन-कौन से खनिज हैं?
जब मनमोहन singh प्रधानमंत्री थे, जो कि अन्य कमजोर प्रधान मंत्री की तरह , जैसे चरण सिंह, चन्द्रशेखर, देवेगौड़ा, गुजराल कमजोर थे- मगर भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के अमूल्य धरोहर “रामसेतु” को तोड़नेवाली इस परियोजना को पूरा करने के प्रति अपनी “प्रतिबद्धता” उन्होंने भी जतायी थी- ऐसा कोन्ग्रेसि क्यों करते रहे यह एक रहस्य है!
काँग्रेस सरकार के निर्देश पर 2 जुलाई 2005 को “रामसेतु” को तुड़वाने का कामशुरु हो गया था
हालाँकि शुरु में रहस्यमयी तरीके से दो क्रेन डूब भी गये।
बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगाकर पर्यावरण तथा आर्थिक मुनाफे के आधार पर परियोजना की समीक्षा करने के लिए कहा। 2008 में ‘पचौरी समिति’ बनी, जिसने इस परियोजना को पर्यावरण के लिए हानिकारक तथा व्यवसायिक रुप से अलाभदायक बताया। मगर कांग्रेस सरकार इस मामले को इज्जत का सवाल मानकर इस परियोजना को हर हाल में पूरा करना चाहती थी ।
***
यहाँ इस बात का जिक्र करना प्रासंगिक होगा कि श्रीलंका के ऊर्जा मंत्री श्री जयसूर्या ने इस सेतु के ऊपर से होकर सड़कबनाने का सुझाव भारत सरकार को दिया था, मगर उस समय भारत सरकार ने इसे नहीं माना। कई बड़ी कम्पनियाँ इस सड़क पुल को बनाने के लिए रुचि भी दिखला चुकी हैं। जाहिर है कि इस सड़क पर जब भारत-श्रीलंका के बीच यातायात होगा, तो दोनों सरकारों की कमाई भी होगी। मगर इस कमाई को छोड़कर भारत सरकार जलजहाजोंसे ही कमाई क्यों पाना चाहती थी ?
करोड़ों भारतीयों की आस्था को ठोकरमारते हुए, पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हुए, व्यवसायिक दृष्टि से हानिकारक होतेहुए भी आखिर कॉंग्रेस सरकार लाखों साल पुराने इस सेतु को क्यों तोड़ना चाहती थी ? क्या इसके पीछे कोई गुप्त रहस्य है?
कहा जा रहा था कि इस सेतु को तुड़वाकर इसके कचरे को अमेरिका को सौंप दिया जायेगा। अमेरिका ने पता लगा लिया है कि इस सेतुके नीचे ‘थोरियम’ (एक रेडियोधर्मी तत्व, जिसका उपयोग परमाणु बम में भी हो सकता है) का बड़ा भण्डार है। यह आशंका कहाँ तक सच है, यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा। मगर भारत सरकार ने इस सेतु को तोड़ने के लिए जिस तरह की जिद्द ठान रखी है और जिस तरह से -काँग्रेस राष्ट्रीय दल इस मामलेमें अंधे बने हुए थी , उससे तो ‘थोरियम’ पाने के लिए ‘अमेरिकी दवाब’ कासन्देह गहरा हो ही रहा है!
***
ध्यान रहे- इस प्राकृतिक संरचना कोतोड़कर जलजहाजों के लिए शॉर्टकट बनाना एक “”विध्वंसात्मक”” कार्य होगा; जबकि इससंरचना के ऊपर पुल बनाकर दो पड़ोसी देशों के बीच यातायात को सुलभ बनाना एक ““रचनात्मक”” कार्य होगा। …और हर हाल में “रचनात्मक” सोच व काम बेहतरहोता है बनिस्पत “विध्वंसात्मक” काम व सोच के।
‘विज्ञान’ एवं ‘तकनीक’ के बल पर ‘प्रकृति’एवं ‘पर्यावरण’ पर ‘विजय’ प्राप्त करने की मनुष्य की जो ‘लालसा’ है, वह ‘आत्महत्या’ के समान होती है। क्योंकि हमने हवा और पानी में मकानों और गाड़ियों को तिनकों की तरह उड़ते और बहते हुए देखा है। सूर्य एक किलोमीटर भी अगर धरती की ओर खिसक जाय, तो हम सब खाक हो जायेंगे। ऐसे में, बेहतर है कि हम प्रकृति एवं पर्यावरण का सम्मान करें और उनके साथ सामंजस्य बिठाते हुए जीने की कला सीख लें।
भावना से रहित प्रतिभा और प्रतिभा सेरहित भावना दोनों ही बेकार है। उसी प्रकार, आस्था से रहित विज्ञान और विज्ञान से रहित आस्था भी किसी काम की नहीं।
iqbal miya ek taraf to aap likh rahe ho ki kisi granth me ram setu ka jikra nahi hai vahi dusri or grantho ke aadhar par pul ki lambai chaudai map rahe ho aur yadi kuch kachara ektha hone se ye pul ban gaya hai to aur jagah par samudra me kahi par aisa pul kyo nahi bana
mera manana hai ki prakriti ke niyamon ke virudh kuch bhi nahi ho sakta. agar ram ne aise halke pattharon se pul banaya jo pani par tair sakte hai to thik h, lekin ye bilkul sambhav nahi hai ki ram naam likhne se dubne wala patthar pani par tair jayega.
Ham log vastav me itne andhvishvashi ho gaye hai ki sachachai sweekarne se bhi darte hai. Agar vo pathathar tairne wale hote to aaj vo avshesh kisi bhi halat me pani se neeche nahi hota. Ye jaroor sambhav hai ki us samay par vanar sena ne is prakritik tatha bhogolik stithi ka labh utha kar lanka pahunchne ka kuchh tarika nikal liya hoga. Isi ghatna ko itihas me pul nirman likh dena kon si badi baat hai.
Mr rajesh aap se main bilkul sahamat nahi hoon agar koi bhi pathar tair sakata hai to aaj ke yeghanik aaj tak kisi bhi pathar kio kyoun nahi tera paye jabki inshan ne aaj kafi tarkki kar li h rawan ke pushpak viman se ache viman to aaaj ke yeghaniko ne bana liye h
Ram setu jab ban raha tha tab unkhi bandar sena patharopar shri ram likhakar setu banarahi thi aur vo pathar tairne lage the par shri ram ne khud patharopar shri ram likha aur use pani me dala to vah pathar pani me kuuuuuuuuu duba iska answer kya muze mil payega….
PN Subramanian said
रोचक और सुन्दर आलेख. आभार
पं.डी.के.शर्मा 'वत्स' said
चित्रमय सुन्दर यात्रा वृ्तांत हेतु आभार स्वीकार करें……..
समय said
हुजूर आप समुद्री झाग देखकर श्रॄद्धानवत हैं…
खैर आस्था अपनी…अगर वाकई पत्थर हो तो मेरे मित्र कैसे तेरेगा….
और यदि तैरते भी होते तो आप ये भी सोचिए कि जिस आदम सेतु का नासाजनित चित्र आपने देखा है, वह समुद्र की गहराईयों में डूबा हुआ क्यों है?…
जय श्री राम….
bhaartendu said
अप्रैल माह में दक्षिणभारत की यात्रा के समय रामेश्वरम भी गया था। उन तैरते पत्थरों को भी देखा था। ‘समय’ जैसा कह रहे हैं वह ‘समुद्रफेन’ नहीं है। समुद्रफेन औषधियों के रूप में भी प्रयुक्त होता है और जड़ी-बूटी बेंचने वालों के यहाँ मिलता है। यह सही है कि मधुमक्खी के छत्ते सरीखा दिखनें वाल वह पत्थर, कोष युक्त है। किन्तु समुद्रफेन से कहीं अधिक भारी है। समुद्रफेन अन्ततः जमा हुआ नमक ही तो है और लगातार पानी में रहनें पर पत्थर की तरह कठोर नहीं रह सकता। इस पर वैज्ञानिक शोध करना चाहिये।
Dr.Arvind Mishra said
समुद्र फेन दरअसल कटल फिश बोन है !
bhaartendu said
ड़ा० साहिब कटलफिश बोन मैने देखा है किन्तु जो पत्थर (या पत्थर सा दिखनें वाला) वहाँ है, वह कटलफिस बोन नहीं है। शोधकर्ताओं को अवश्य देखना चाहिये।
mypatrika said
aati sunder vivaran
सागर नाहर said
बहुत बढ़िया जानकारी और वर्णन।
VIpul said
Mr. Samay,
Yadi Dwarka Samudra Me dubi hai to kya ye mana jaye ki Dwarka ka Nirman Samudra me hus tha.
Titanic Samudra me duba hua hai to kya waha bhi Samudra me bana Hai.
Pankaj Shukla said
bahut hi badiya likha hai
Ram Narayan Ray said
im Ram Narayan Ray janakpur nepal
dr.sharad kr maheshwari said
this is the known fact ,this is very good aknowledgement for c.m. of tamilnadu &p.m.of bharat pls save this this is our true heritage……
Shashi kant kumar said
I thanking you again and again for this information. I want to talk with you so please contact me on our mail ID is shashi_nhit@rediffmail.com if it will possible then pls send your mobile number with name.
Very very thank’s
vaneet said
mere hisaab se is ramsetu ko hatan yaan hatane ki koshish karna bevakoofi hai kyounki ye raam ji aur unke ithaas ke sakshaat saboot hai
som kumud ojha said
Mr samay , meri ray mein ek MANAW bhi nahi janata hai ki usaka ASALI B AAP AUR MA kaun hai to kya apne BAAP , MA KE existence bhool jayega ,yahi haal apke PAGAL SOCH ka hai BHAGWAN bhi apka BHALA n ahi kar sakata
Devesh said
good
rajender said
ramayan ke anusar har sakshya sahi baitha hai, so I am very much convienced about all facts
regds
rajender
GAGAN GUPTA said
अरे हमे भी बताओ राम सेतु संबंधी
pankaj tiwari said
jai shri ram SHri Ram je ki lila nirali hai
iqbal said
तिल को पहाड साबित करने की साजिश,,,पेट में मेल कुचैल,, रेत,, कंकर से काफी बडी-बडी पत्थरी बन जाती हैं,,, ऐसे ही समुद्र में आलतु फालतु चीजों के जुडने से कुछ पुल जैसा दिखने लगा है,, ”क्या बालू की भीत पर खड़ा है हिन्दू धर्म?” डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात’ का लिखा लेख ”कहां से टपका रामसेतु” इस विषय पर पढते हैं तो पता चलता है कि यह नाम ”राम सेतु” शब्द तक किसी ग्रंथ में कहीं नहीं मिलता,, कंकर-पत्थ्र जम-जम कर जो आज कहीं है कहीं नहीं तो कहीं 10 फुट चौडी पटटी दिखायी दे जाती है इसको हिन्दू ग्रंथों का 10 योजन अर्थात 128 किलोमीटर चौडा पुल कहा जा रहा,, लंबाई की बात करें तो श्रीलंका से हिन्दुस्तान की इस हिस्से कुल दूरी 30 किलोमीटर लम्बी है जबकि ग्रंथ में पुल की 1468 किलोमीटर लिखी है,,,
विविदित पुल की लंबाई 30 किलोमीटर ,चौडाई कहीं 10 से कहीं 30 फुट तक ,जबकि रामायण के अनुसार-
चौडाई 128 किलोमीटर
लंबाई 1288 किलोमीटर
वानरों ने पहले दिन 14 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और 5वें दिल 23 योजन लंबा पुल बाधा इस तरह नल ने 100 योजन अर्थात 1288 किलोमीटर लंबा पुल तैयार किया, पुल 10 योजन अर्थात 128 किलोमीटर चौडा था,
दश्योजनविस्तीर्ण शतयोजनमायतम्
दद्टशुर्देवरांधर्वा- नलसेतुं सुदुष्करम
–वाल्मिकी रामायण 6/22/76
लम्बाई-
वाल्मिमिकी रामायण के अनुसार यह नलसेतु 100 योजन अर्थात 1288 किलोमीटर लंबा था (संस्कृत इंगलिश डिक्शनरी के अनुसार 1 योजन 8-9 मील का होता है, यहां हम ने 8 मील मान कर यह किलोमीटर में 1288 का आंकडा दिया है, यदि 9 मील का योजन मानें तो 100 योजन 1468 किलोमीटर होगा) पर अब जो पुल है वह तो केवल 30 किलोमीटर है, शेष 1258 अथवा 1438 किलोमीटर है कहां है्,
पानी में तैरते पत्थरों का सच-
floating stones [Pumice]
उज्जैन साइंस कॉलेज के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ आर एन तिवारी के अनुसार ज्वालामुखी फटने के बाद जब लावा जमता है तो ऐसे पत्थर बनते हैं इनका घनत्व कम होने के कारण यह पानी में तैर सकते हैं,,,,, एसे पत्थरों को प्यूमिस स्टोन Pumice कहा जाता है,
वहीं भौमिकी अध्ययनशाला विक्रम विश्वविद्यालय के अध्यक्ष डॉ़ प्रमेंद्र देव ने बताया कि बसाल चटटानों के कारण ऐसे पत्थर बनते हैं, सतह पर छिद्र होने के कारण वजन कम होता है इस कारण यह पानी पर तैर सकते हैं , अधिक जानकारी के लिए ,, यू टयूब पर Pumice stone सर्च करके देखें
अधिक जानकारी इधर देखें
http://en.wikipedia.org/wiki/Pumice
अनाम said
“रामसेतु” पर
1961 से लेकर 1996 तक जितनी भी समितियाँ बनी थीं, सबने मण्डपम और धनुषकोडि के बीच की जमीन को काटते हुए नहर बनाने का सुझाव दिया था… किसी ने भी “रामसेतु” को क्षतिग्रस्त करने की बात नहीं कही थी!
मगर 2001 में भारत सरकार ने आश्चर्यजनक एवं रहस्यमयी तरीके से “रामसेतु” को तोड़ते हुए नहर बनाने का आदेश दिया!
मैं सोच रहा हूँ- क्या यह वही समय था, जब अमेरिका ने ‘नासा’ के माध्यम से “रामसेतु” के नीचे दबे “खनिज” का पता लगा लिया था???
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हाल ही में भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि चूँकि “सेतु समुद्रम परियोजना” पर 829 करोड़, 32 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं, इसलिए अब इसे बन्द नहीं किया जायेगा।
कुछ समय पहले कॉन्ग्रेस सरकार ने अपने एक हलफनामे में रामजी को “काल्पनिक” बताया था।
एक हलफनामे में यह भी कहा था कि रामायण के अनुसार चूँकि रामजी ने खुद ही इस पुल को तोड़ दिया था, इसलिए इसे तुड़वाने में कोई हर्ज नहीं है।
कितनी आश्चर्यजनक बात है! कहाँ तो भारत सरकार को इस पुल को “विश्व धरोहर” में शामिल करने के लिए यूनेस्को मेंअपील करनी चाहिए और कहाँ सरकार इसे नष्ट करने पर तुली है! ध्यान रहे कि सरकार द्वारा ही गठित ‘पचौरी समिति’ ने इस परियोजना परआगे न बढ़ने की सलाह दे रखी है- क्योंकि यह फायदेमन्द साबित नहीं होगी!
इस परियोजना के तहतभारत-श्रीलंका के बीच (धनुषकोडि और तलईमन्नार के बीच) पानी में डूबा हुआ जो पुलहै, उसे तोड़कर जलजहाजों के आवागमन के लिए कुल 89 किलोमीटर लम्बी दो नहरें बनायी जानी हैं। यह चूना-पत्थर की चट्टानों से बना प्रायः 30 किलोमीटर लम्बा पुल है। इसे “एडम्स ब्रिज” (बाबा आदम के जमाने का पुल) भी कहा जाता है। इन नहरों के बन जाने पर भारत के पूर्वी व पश्चिमी तटों के बीच आने-जाने वाले जलजहाजों के करीबन 30 घण्टे और 780 किलोमीटर बचेंगे, जो आज श्रीलंका का चक्कर लगाने में खर्च होते हैं।
इसी पुल के बारे में मान्यता है कि श्रीरामचन्द्र जी ने इसे श्रीलंका पर चढ़ाई करने के लिए बनाया था और रावण को हराकर, सीता को लेकर भारत लौटने के बाद इसे तोड़ भी दिया था। इस प्रकार, इस पुल के साथ भारतीयों की आस्था बहुत ही गहरे रुप से जुड़ी हुई है।
मामला सर्वोच्च न्यायालय में है और वहाँ बड़ी-बड़ी बहस, बड़े-बड़े तर्क-वितर्क हो रहे है। यहाँ हम एक सामान्य भारतीय के नजरिये से पूरे मामले को देखने की कोशिश करते हैं।
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सबसे पहले हम “पूर्वाग्रहों से रहित होकर” सोच-विचार करते हैं। ऐसा करने पर हम पायेंगे कि “रामसेतु” एक “प्राकृतिक” संरचना ही होनी चाहिए। हजारों साल पहले जब समुद्र का जलस्तर कुछ मीटर नीचा रहा होगा, तब इस संरचना का बड़ा हिस्सा जल से बाहर रहा होगा। फिर भी, एक अच्छा-खासा बड़ा हिस्सा जल में डूबा हुआ होगा।
श्रीरामचन्द्रजी कीसेना ने इन्हीं “डूबे हुए” हिस्सों पर पत्थरों को कायदे से जमाकर तथा कुछ खास तरीकों से बाँधकर इस प्राकृतिक संरचना के ऊपर एक प्रशस्त “पुल” तैयार किया होगा, जिससे होकर एक बड़ी सेना गुजर सके। जहाँ तक पूल की लम्बाई – चौड़ाई की बात है उस समय मापन की इकाई योजन थी जो आज के हिसाब से समुद्र के इस छोर से उस छोर यानी श्रीलंका तक ठीक है l
जब नल और नील-जैसे इंजीनियरों की देख-रेख में सैनिक या मजदूर सही जगह पर पत्थरों को डाल रहे होंगे, तब ये पत्थर समुद्र की अतल गहराईयों में डूब नहीं जाते होंगे, बल्कि जल के नीचे की प्राकृतिक संरचना के ऊपर टिक जाते होंगे। इस प्रकार, पत्थरों की पहली, दूसरी, तीसरी, या चौथी परत डालते ही वे जल के ऊपर नजर आने लगते होंगे। या उस समय के इंजीनियर नल – नील कूछ तैरने वाले पत्थरो को खोजें हों और पानी में डालने से पूर्व श्रद्धावश राम लिखे होंगे और तैरने पर आम सैनिकों या मजदूरों को यह किसी चमत्कार से कम नहीं लगता होगा कि पत्थर समुद्र की अतल गहराई में डूब नहीं रहे हैं। तभी से “पत्थरों के तैरने” की सच्चाइ या किंवदन्ति प्रचलित हो गयी होगी।
हजारों वर्षों बाद लहरों के आघात से “जमे-जमाये और बँधे हुए” ये पत्थर अपनी जगह से खिसक कर गहराई में डूब गये होंगे, जबकि मूल प्राकृतिक संरचना ज्यों की त्यों बनी रही होगी। समय के साथ समुद्र का जलस्तर भी बढ़ गया होगा। तब से इस प्राकृतिक संरचना का ज्यादातर हिस्सा जल के नीचे ही है।
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अब हम प्रचलित मान्यताओं की बात करते हैं। सर्वाधिक प्रचलित मान्यता के अनुसार रामजी आज से 17 लाख, 50 हजारसाल पहले हुए थे। संयोगवश, इस सेतु की आयु भी 17 लाख, 50 हजार साल ही आंकी गयी है। इस मान्यता के तहत पूरे सेतु को ही “मानव निर्मित” बताया जाता है। अर्थात्, रामजी की सेना ने इस पुल को बनाया था।
हालाँकि रामजी के समय को लेकर बहुत सारी मान्यतायें हैं। “मनुस्मृति” में दी गयी जानकारी (24 वें महायुग केत्रेतायुग के समाप्त होने में जब लगभग 1041 वर्ष शेष थे, तब श्रीरामजीका जन्म हुआ था) के आधार पर शोध करने पर पाया जाता है कि आज (विक्रम संवत्) से लगभग 1 करोड़, 81 लाख, 50 हजार, 15o वर्ष पूर्व रामजीका जन्म हुआ था।
एक आधुनिक मान्यता इधर कुछ समय सेप्रचलित हो रही है, जिसके परिणाम ऊपर वर्णित “पूर्वाग्रह-रहित” विचारोंसे मेल खाते हैं। ‘इंस्टीच्यूट ऑव साइंटिफिक रिसर्च ऑन वेदाज’ (संक्षेप में “I-SERVE”, वेबसाइट- http://serveveda.org) के वैज्ञानिकों ने आदिकवि बाल्मिकी द्वारा रामायण में वर्णित रामजीके जन्म के समय के ग्रहों-नक्षत्रों की स्थिति (भगवान राम के जन्म केसमय सूर्य, मंगल, गुरु, शुक्र तथा शनि उच्चस्थ थे और अपनी-अपनी उच्च राशि क्रमशः मेष, मकर, कर्क, मीन और तुला में विराजमान थे।) को “प्लेनेटेरियम गोल्ड” नामक सॉफ्टवेयर में डालकर देखा, तो पाया कि कप्म्यूटर 10 जनवरी, 5114 ईसा पूर्व की तिथि तथा अयोध्या का स्थान बता रहा है। यानि रामचन्द्र जी का जन्म आज से 7,127 साल पहले अयोध्या में हुआ था- 10 जनवरी को। ध्यान रहे- यह “सौर कैलेण्डर” की तिथि है। इस तिथि को एक दूसरे सॉफ्टवेयर की मदद से “चन्द्र कैलेण्डर” में बदला गया, तो तारीख निकली- चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष का नौवाँ दिन और समयनिकला- दोपहर 12 से 1 के बीच। यह वही तारीख है, जब भारत में “रामनवमी”मनायी जाती है!
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नेशनल इंस्टीच्यूट ऑव ओस्नोग्राफी, गोआ के वैज्ञानिक डॉ. राजीव निगम कहते हैं कि 7000-7200 साल पहले समुद्र का जलस्तर आज के मुकाबले 3 मीटर नीचा था। संयोग से, आज इस पुल का ज्यादातर हिस्सा समुद्र की सतह से तीन मीटर ही नीचे है। यानि रामजी के जन्म की 5114 ईस्वीपूर्व वाली तारीख अगर सही है, तो रामजी ने जब श्रीलंका पर चढ़ाई की होगी, तब इस पुलका ज्यादातर हिस्सा पानी से ऊपर ही रहा होगा- कुछ डूबे हुए हिस्सों पर ही पत्थरोंको जमाकर प्रशस्त पुल तैयार किया गया होगा।
जियोलॉजिकल सर्वे ऑव इण्डिया के पूर्व निदेशक डॉ. बद्रीनारायण (जिनके नेतृत्व में ‘सेतुसमुद्रम शिपिंगचैनल प्रोजेक्ट’ के भूगर्भशास्त्रीय पक्षों का अध्ययन किया गया था) के अनुसार, रामसेतु एक प्राकृतिक संरचना है, जिसका ऊपरी हिस्सा मानव-निर्मित है, क्योंकि समुद्री बालू के बीच में पत्थर, मूंगे की चट्टानें और बोल्डर पाये गये। इस अध्ययनमें न केवल पुल के दोनों किनारों को अपेक्षाकृत ऊँचा पाया गया था, बल्कि यहाँ मेसोलिथिक-माइकोलिथिक उपकरण भी पाये गये थे, जिससे पता चलता है कि 8000-9000 सालपहले इस पुल से होकर सघन यातायात होता था। रामजी के लौटनेके बाद भी 3,000 वर्षों तक इस पुल से होकर आवागमन होता था- ऐसे सबूत पाये गये।
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अब बात पर्यावरण की। चूँकि यह एक प्राकृतिक संरचना है और लाखों साल पुरानी है, इसलिए जाहिर है कि इसके आस-पास पलने वाले समुद्री जीव-जन्तुओं, वनस्पतियों इत्यादि ने खुद को यहाँ की खास स्थिति के हिसाब से ढाल लिया है। यहाँ के मूँगे खास तौर परप्रसिद्ध हैं। ऐसे में, इस संरचना में यदि तोड़-फोड़ की जातीहै और यहाँ से जलजहाजों का आवागमन शुरु होता है, तो यहाँ पाये जाने वाले जीव-जन्तुओं, मूँगों तथा वनस्पतियों के अस्तित्व पर संकट मँडराने लगेगा- इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए। इतना ही नहीं, आस-पास के लाखों मछुआरों का जीवन-यापन भी प्रभावित होगा।
यह भी कहा जाता है कि यह संरचना ‘सुनामी’ की लहरों को रोकती हैं।
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कहने का तात्पर्य यहहै कि रामजी को एक काल्पनिक चरित्र मानते हुए या रामजी द्वारा इस सेतु को बनाने, या प्राकृतिक संरचना पर सेतु बाँधने की बात को माइथोलॉजी बताते हुए सिर्फ जलजहाजोंके आवागमन के लिए एक “शॉर्टकट” बनाने के उद्देश्यसे करोड़ों भारतीयों की भावना को ठेस पहुँचाना कोई बुद्धिमानी नहीं है। न ही पर्यावरण की दृष्टि से लाखों साल पुरानी इस संरचना में तोड़ना उचित माना जायेगा।
हाँ, अगर “आस्था एवं विश्वास” शब्दों से ही नफरत रखने वाले कुछ खास लोग इसे तोड़ने की जिद ठान लें, तो यह अलग मामला बन जाताहै। इसी प्रकार, अगर कुछ लोग सिर्फ अपना मुनाफा देखें और इसकी परवाह बिलकुल न करेंकि हमें आनेवाली नस्लों के लिए भी पर्यावरण को रहने लायक बनाये रखना है, तो फिर अलग बात है।
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लगे हाथ इस मामले में ‘राजनीति’ की बात भी हो जाय। ऐसी बात कही जा रही है कि काँग्रेस सरकारने इस परियोजना को बनाया है और भाजपा इसके सख्त खिलाफ है। वास्तव में, यह मामला काफी पुराना है और इस मामले में सारी राजनीतिक बिरादरी साथ-साथ है।
“मन्नार कीखाड़ी” से होकर जलजहाजों के लिए रास्ता बनाने की परिकल्पना 1860 में जन्मी थी, जब अल्फ्रेड डी. टेलर नामक एक अँग्रेज ने ऐसा सोचा था। आजादी से पहले इस परिकल्पनाको साकार करने की दिशा में 9 समितियाँ बनीं और आजादी के बाद 5 समितियाँ। हर समिति ने ‘धनुषकोटि’ और ‘मण्डपम’ के बीच की जमीन को काटकर नहरबनाने का सुझाव दिया। 1956, 1961, 1968, यहाँ तक कि 1996 की रिपोर्ट में भी “रामसेतु” को तोड़ने का जिक्र नहीं था।
मगर आश्चर्यजनक रुप से 2001 में भारत सरकार ठीक उसी प्रोजेक्ट को मान्यता देती है, जिसमें “रामसेतु” को तोड़ते हुए नहरों का निर्माण होना था। क्या उन्हीं दिनों अमेरिका अपनी अन्तरिक्ष संस्था ‘नासा’ के माध्यम से “रामसेतु” पर शोध कर रहा था- कि इसकी तह में कौन-कौन से खनिज हैं?
जब मनमोहन singh प्रधानमंत्री थे, जो कि अन्य कमजोर प्रधान मंत्री की तरह , जैसे चरण सिंह, चन्द्रशेखर, देवेगौड़ा, गुजराल कमजोर थे- मगर भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के अमूल्य धरोहर “रामसेतु” को तोड़नेवाली इस परियोजना को पूरा करने के प्रति अपनी “प्रतिबद्धता” उन्होंने भी जतायी थी- ऐसा कोन्ग्रेसि क्यों करते रहे यह एक रहस्य है!
काँग्रेस सरकार के निर्देश पर 2 जुलाई 2005 को “रामसेतु” को तुड़वाने का कामशुरु हो गया था
हालाँकि शुरु में रहस्यमयी तरीके से दो क्रेन डूब भी गये।
बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगाकर पर्यावरण तथा आर्थिक मुनाफे के आधार पर परियोजना की समीक्षा करने के लिए कहा। 2008 में ‘पचौरी समिति’ बनी, जिसने इस परियोजना को पर्यावरण के लिए हानिकारक तथा व्यवसायिक रुप से अलाभदायक बताया। मगर कांग्रेस सरकार इस मामले को इज्जत का सवाल मानकर इस परियोजना को हर हाल में पूरा करना चाहती थी ।
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यहाँ इस बात का जिक्र करना प्रासंगिक होगा कि श्रीलंका के ऊर्जा मंत्री श्री जयसूर्या ने इस सेतु के ऊपर से होकर सड़कबनाने का सुझाव भारत सरकार को दिया था, मगर उस समय भारत सरकार ने इसे नहीं माना। कई बड़ी कम्पनियाँ इस सड़क पुल को बनाने के लिए रुचि भी दिखला चुकी हैं। जाहिर है कि इस सड़क पर जब भारत-श्रीलंका के बीच यातायात होगा, तो दोनों सरकारों की कमाई भी होगी। मगर इस कमाई को छोड़कर भारत सरकार जलजहाजोंसे ही कमाई क्यों पाना चाहती थी ?
करोड़ों भारतीयों की आस्था को ठोकरमारते हुए, पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हुए, व्यवसायिक दृष्टि से हानिकारक होतेहुए भी आखिर कॉंग्रेस सरकार लाखों साल पुराने इस सेतु को क्यों तोड़ना चाहती थी ? क्या इसके पीछे कोई गुप्त रहस्य है?
कहा जा रहा था कि इस सेतु को तुड़वाकर इसके कचरे को अमेरिका को सौंप दिया जायेगा। अमेरिका ने पता लगा लिया है कि इस सेतुके नीचे ‘थोरियम’ (एक रेडियोधर्मी तत्व, जिसका उपयोग परमाणु बम में भी हो सकता है) का बड़ा भण्डार है। यह आशंका कहाँ तक सच है, यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा। मगर भारत सरकार ने इस सेतु को तोड़ने के लिए जिस तरह की जिद्द ठान रखी है और जिस तरह से -काँग्रेस राष्ट्रीय दल इस मामलेमें अंधे बने हुए थी , उससे तो ‘थोरियम’ पाने के लिए ‘अमेरिकी दवाब’ कासन्देह गहरा हो ही रहा है!
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ध्यान रहे- इस प्राकृतिक संरचना कोतोड़कर जलजहाजों के लिए शॉर्टकट बनाना एक “”विध्वंसात्मक”” कार्य होगा; जबकि इससंरचना के ऊपर पुल बनाकर दो पड़ोसी देशों के बीच यातायात को सुलभ बनाना एक ““रचनात्मक”” कार्य होगा। …और हर हाल में “रचनात्मक” सोच व काम बेहतरहोता है बनिस्पत “विध्वंसात्मक” काम व सोच के।
‘विज्ञान’ एवं ‘तकनीक’ के बल पर ‘प्रकृति’एवं ‘पर्यावरण’ पर ‘विजय’ प्राप्त करने की मनुष्य की जो ‘लालसा’ है, वह ‘आत्महत्या’ के समान होती है। क्योंकि हमने हवा और पानी में मकानों और गाड़ियों को तिनकों की तरह उड़ते और बहते हुए देखा है। सूर्य एक किलोमीटर भी अगर धरती की ओर खिसक जाय, तो हम सब खाक हो जायेंगे। ऐसे में, बेहतर है कि हम प्रकृति एवं पर्यावरण का सम्मान करें और उनके साथ सामंजस्य बिठाते हुए जीने की कला सीख लें।
भावना से रहित प्रतिभा और प्रतिभा सेरहित भावना दोनों ही बेकार है। उसी प्रकार, आस्था से रहित विज्ञान और विज्ञान से रहित आस्था भी किसी काम की नहीं।
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vivek said
iqbal miya ek taraf to aap likh rahe ho ki kisi granth me ram setu ka jikra nahi hai vahi dusri or grantho ke aadhar par pul ki lambai chaudai map rahe ho aur yadi kuch kachara ektha hone se ye pul ban gaya hai to aur jagah par samudra me kahi par aisa pul kyo nahi bana
gulab said
iqbal ka maksad islam ka prachar karna hai .islam me bhi aisi kitni hi bate hai jise science nahi manta.
Ram Prakash said
Iqbal jee aap jaise khuda pe vishwas rakhte ho waise hum v ram aur ram setu pe vishwas rakhte hai……
dipali gole said
achha he,,,,,,,,
Rajesh Latiyan said
mera manana hai ki prakriti ke niyamon ke virudh kuch bhi nahi ho sakta. agar ram ne aise halke pattharon se pul banaya jo pani par tair sakte hai to thik h, lekin ye bilkul sambhav nahi hai ki ram naam likhne se dubne wala patthar pani par tair jayega.
Ham log vastav me itne andhvishvashi ho gaye hai ki sachachai sweekarne se bhi darte hai. Agar vo pathathar tairne wale hote to aaj vo avshesh kisi bhi halat me pani se neeche nahi hota. Ye jaroor sambhav hai ki us samay par vanar sena ne is prakritik tatha bhogolik stithi ka labh utha kar lanka pahunchne ka kuchh tarika nikal liya hoga. Isi ghatna ko itihas me pul nirman likh dena kon si badi baat hai.
अनाम said
Mr rajesh aap se main bilkul sahamat nahi hoon agar koi bhi pathar tair sakata hai to aaj ke yeghanik aaj tak kisi bhi pathar kio kyoun nahi tera paye jabki inshan ne aaj kafi tarkki kar li h rawan ke pushpak viman se ache viman to aaaj ke yeghaniko ne bana liye h
अनाम said
nice information (y)
pradeep said
ram setu sri ram ka hi bnyaya hua hai jo sahi isme tippdi karna surya ko diya dikhane ke saman hai
pradeep said
ramsetu ka ullekh shrimad ramayan me bhi hai jo sahi hai
AMIT PANCHAL said
जय श्री राम में सभी धर्मे स्थल देखना चाहाता हु क्या आप ये जगह कहा कहा है मुझे ब्तायंगे ।
अनाम said
जय जय श्री राम
रोहित कुमार said
वास्तव में यह सत्य है
………………………………………………..जय श्री राम
लालू यादव said
मूझे यह लेख पसंद आया मौका मिलेगा तो जरूर एक बार दश्रंन के लिए जाऊंगा
omkar said
Ram setu jab ban raha tha tab unkhi bandar sena patharopar shri ram likhakar setu banarahi thi aur vo pathar tairne lage the par shri ram ne khud patharopar shri ram likha aur use pani me dala to vah pathar pani me kuuuuuuuuu duba iska answer kya muze mil payega….
Vipin pal said
Omkar ji ram ji ke dwara choda gya pathar isliye dub gya kyunki ram ji ne jise chora vo duba hi h to vo pathar kaise ter jata.. jai shree ram