मई 5, 2024 at 3:41 पूर्वाह्न · Filed under uncategarised
शिरडी से लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर की दूरी पर है – सप्तश्रृंगी माता का मंदिर ….
ऊँचें पहाङ पर विराजी है माँ ….. मंदिर से पहले बहुत चढ़ाई पर दो किलोमीटर की दूरी गाङी से तय की. सामने दाहिनी ओर दिखाई दिया पहाङ जहाँ तक फिर से चढ़ाई थी …..
लेकिन सामने बङा आरामदायक कक्ष था जहाँ बाज़ार सजा था पूजा सामग्री और प्रसाद का. आगे उङन खटोला (रोप वे ) से कुछ चढ़ाई हुई फिर ऊपर संकरी ऊँची सीढ़ियाँ चढ़ कर पहुँचे माँ के दर्शन के लिए ….
पहाङी गुफा सा वातावरण और सामने माँ की बङी मूर्ति … दाहिने पैर के नीचे भस्मासुर जिससे माँ की मुद्रा कुछ बाईं ओर झुकी है ….
फ़रवरी 14, 2024 at 3:39 पूर्वाह्न · Filed under uncategarised
संस्कृत में सरस्वती वंदना प्रस्तुत है –
यह वंदना मैंने स्कूल में सीखी थी …. इस वन्दना में माँ सरस्वती की पूजा अर्चना है, अक्षत चन्दन लगाया जा रहा है, धूप दीप जलाए जा रहे है, माला चढ़ाई जा रही है, शंख बजाया जा रहा है चरणों में पुष्प रख कर नतमस्तक हुआ जा रहा है …..
नवम्बर 6, 2023 at 9:29 पूर्वाह्न · Filed under uncategarised
statue of equality – तेलंगाणा, हैदराबाद, शमशाबाद हवाई अड्डे से कुछ दूरी पर है ….. स्थानीय भाषा में इसे कहा जाता है – समता मूर्ति ….. आचार्य रामानुज – दार्शनिक, समाज सुधारक, संत, विष्णु भक्त कवि ……
बङा लॉन पार करने के बाद घेरे में है छोटे-छोटे 108 मंदिर इन छोटे मंदिरों में विष्णु की वैसी ही मूर्तियाँ है जो देश भर में फैले और नेपाल में स्थित विष्णु मंदिरों में है जिनमें तिरूमला, रंगानाथ, जोशीमठ, द्वारिका, मथुरा, मुक्तिनाथ भी शामिल है यानि इस एक ही स्थान पर हम सभी विष्णु मंदिरों के दर्शन कर सकते है ….
भीतर मुख्य स्थल एक बङा हॉल है जिसमें 90 स्तम्भ है जो गोलाई में चार घेरे में है। भीतर के तीन घेरे 8-8 स्तम्भों के है और शेष बाहरी घेरे में है जिन पर आचार्य रामानुज के जीवन की झांकियाँ है। ये स्तम्भ तीसरी मंज़िल तक है। पहली मंज़िल पर बीच में तानपुरा लिए बैठे हुए रामानुज आचार्य की सोने की मूर्ति है। इन स्तम्भों पर भी स्वर्णिम आभा का प्रकाश है जिससे सारा वातावरण स्वर्णिम लगता है। तीसरी मंज़िल पर रामानुज आचार्य की 216 फीट ऊँची मूर्ति है जो बाहर से भी दूर तक दिखाई देती है –
मूर्ति के आधार पर गोलाई में हाथी की मूर्तियाँ है जिनके मुख से फव्वारे निकलते है।
यहाँ से नीचे आने पर फाउंटेन है जहाँ लाइट और साउंड शो होता है। शो का आनन्द ले कर बाहर आते समय प्रसाद दिया जाता है। आगे हाल में भोजनालय है और कुछ स्टॉल भी है।
पूरे निर्माण में काकतीय, चोल, पल्लव, विजयनगर की शैली में शिल्पकारी है।
कुछ देर आध्यात्मिक वातावरण में आनन्द लेने के बाद हम लौट आए।