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स्मृति शेष – अज्ञेय

 

Dead long dead
long dead !
And my heart is a handful of dust,
And the wheels go over my head,
And my bones are shaken with pain,
For into a shallow grave they are thrust,
Only a yard beneath the street,
And the hoofs of the horses beat, beat
The hoofs of the horses beat
मृत – चिरातीत !
और मेरा हृदय मुट्ठी भर राख हो गया,
पहिए मेरे ऊपर से गुज़रते है,
मेरी अस्थियाँ पीङा से काँपती है,
क्योंकि वे एक तंग कब्र में बंद है,
पथ की सतह के गज़ भर नीचे,
और घोङो की अनवरत टाप टाप टाप …

 

शेखर – एक जीवनी  … उपन्यास के पहले भाग में है यह कविता, इसी रूप में पहले अंग्रेज़ी फिर हिन्दी में जिसके रचनाकार है सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन  ” अज्ञेय ”  जिनकी आज पुण्यतिथि है.

अध्ययनशील अज्ञेय जी ने साहित्य की विभिन्न विधाओं में लिखा – कविता, कहानी, उपन्यास, संस्मरण, यात्रा विवरण, यहां तक कि अनुवाद भी किया और सम्पादन कर विभिन्न कवियों को प्रकाश में ले आए.
दो भागों में लिखा गया उपन्यास … शेखर – एक जीवनी …. न केवल अज्ञेय जी की महत्वपूर्ण रचना है बल्कि साहित्य जगत विशेषकर उपन्यासों की दुनिया में महत्वपूर्ण है. जैनेन्द्र जी ने उपन्यास सुनिता लिख कर मनोवैज्ञानिक उपन्यासों की जो शुरूवात की थी उसकी अगली और महत्वपूर्ण कड़ी है – शेखर – एक जीवनी
जैनेन्द्र जी ने केवल मन का विश्लेषण किया था लेकिन अज्ञेय ने मनोविज्ञान के विशेष कर फ्रायड के सिद्धांतों पर शेखर के चरित्र को रचा है. शेखर के मन में केवल द्वंद्व ही नही है बल्कि वह उसका समाधान भी चाहता है, और समाधान न मिलने पर विद्रोही हो उठता है. शेखर की यह प्रवृति बचपन से ही रही है, पिता का कठोर अनुशासन और जिज्ञासु मन को न मिलने वाले समाधानों ने उसे विद्रोही बना दिया. इसीसे कालेज में आकर वह क्रांतिकारियों के दल से आसानी से जुड़ गया. ऎसी ही गतिविधियों से ब्रिटिश सरकार से फांसी का हुक्म मिला और इस अंतिम समय शेखर अपनी जीवन यात्रा याद कर रहा है जिससे यह उपन्यास आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया है और अतीत में यानि फ्लैशबैक में है. भाषा-शैली का प्रवाह कुछ इस तरह है जैसे शेखर अपने मन का मंथन कर रहा है. जिससे चरित्र स्वाभाविक रूप से उभरा.
शेखर के साथ पूरी तरह से जुड़े रहे अज्ञेय जी तभी तो उनका विविध आयामी साहित्यिक रूप नज़र आया और दो-तीन जगह अपनी बात स्पष्ट करने के लिए कविता का प्रयोग किया वो भी अंग्रेज़ी में जिसे फिर हिन्दी में भी लिखा लेकिन शब्द-शब्द अनुवाद नही.
प्रशंसा के साथ एक आलोचना इस उपन्यास की यह भी रही कि पहले भाग में लम्बे चले शेखर के बचपन में उसे उच्च स्तरीय अंग्रेज़ी स्कूल का छात्र बताया गया जबकि हिन्दी माध्यम का छात्र बताना चाहिए था. खैर … उपन्यास का महत्त्व कभी कम नही हुआ  ….
गौरवशाली साहित्यकार को सादर नमन !

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