मैसूर ऊटी सीमा पर नन्जेश्वर मंदिर देखने के बाद थोड़ा आगे बढ़ते ही एक गाँव हैं जिसका नाम हैं गुन्डल पेट।
दक्षिण भारतीय भाषाओं में पेट का अर्थ होता हैं शहर। पर यह शहर नही गाँव ही हैं। इस गाँव में मुख्य रूप से सिल्क का काम होता हैं। सिल्क के कीड़े पालने से लेकर बुनाई, छपाई, रंगाई सभी यहीं होता हैं इसीसे इसे गुन्डल सिल्क कहते हैं।
वैसे गुन्डल सिल्क की साड़ियाँ हमारी देश की महिलाओं के लिए नया नाम नही हैं। दक्षिण भारत में यह साड़ियाँ बहुत मिलती हैं और देश के अन्य भागों में साउथ इन्डियन सिल्क की साड़ियों की वेरायटी में यह साड़ियाँ आसानी से गुन्डल सिल्क या साउथ इन्डियन सिल्क के नाम से मिल जाती हैं। इसमे सभी तरह की साड़ियाँ मिलती हैं, प्रिंटेड साड़ियाँ रोजमर्रा के पहनने के लिए और जरी के काम की विशेष अवसरों पर पहनने के लिए और इसी के अनुसार इनके अलग-अलग मूल्य हैं।
शहर से अगर इन साड़ियो को खरीदा जाए तो विभिन्न करो को मिलाकर इनके दाम अधिक हो जाते हैं। हम तो ज्यादा पैसे दे देते हैं पर साड़ियाँ तैयार करने वालो को उतने पैसे नही मिल पाते हैं। यदि इन साड़ियों को इसी गाँव से खरीदा जाए तो हमें बहुत कम मूल्य देना पडेगा और साड़ियाँ तैयार करने वालो को फिर भी अधिक ही लाभ होता हैं। इस तरह इस गाँव की हम सहायता कर सकते हैं।
साड़ियाँ वाकई बहुत अच्छी हैं। रेशम की गुणवत्ता (क्वालिटी) और जरी के काम के अनुसार इनके दाम तीन सौ रूपए से शुरू होकर चालीस हजार तक हैं।
यहाँ से हमारी ऊटी की लगभग पांच घंटे की रोमांचक यात्रा शुरू हुई जिसकी चर्चा अगले चिट्ठे में....