महाकाल का मंदिर स्थित है उज्जैन नगरी में। यहाँ दो ज्योतिर्लिंग है – महाकालेश्वर और ओंकारेश्वर
यहाँ हर समय श्रृद्दालुओं का तांता लगा रहता है। परिसर की कतार पार करने के बाद सीढिनुमा रास्ता पार कर हम ऊपर पहुँचते है। यहाँ रैलिंग से नीचे नंदी और शिवलिंग के स्पष्ट दर्शन हो जाते है। नीचे उतर कर सामने से दर्शन करना भीङ के कारण थोङा कठिन ही होता है।
परिसर में गर्भगृह में दुसरे ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर के दर्शन होते है। इसके अलावा विभिन्न गर्भगृहों में विभिन्न देवी-देवताओं साक्षी गणेश, गायत्री माँ, बृहस्पति देवता, नवग्रह के रूप में शिवलिंग के दर्शन किए जा सकते है।
प्रंगण में विशेष है महाकाल की मूर्ति – शिव जी जिनके बाईं ओर गोद में पार्वती और दाहिनी ओर त्रिशूल। सामने पात्रों में भस्म रखी है। यह भस्म तङके होने वाली भस्मारती की होती है। सुबह चार बजे होने वाली यह भस्म आरती ही महत्वपूर्ण मानी जाती है जिसमें शामिल होने के लिए रात एक बजे से श्रृद्धालु लाइन लगाते है। भस्म शमशान से आती है। हर रोज़ शमशान से आनी वाली भस्म से पुरोहित आरती करते है और आरती की इस भस्म को इस तरह उङाया जाता है कि सभी श्रृद्धालुओं के सिर पर गिरे और आशिर्वाद मिले। यही भस्म महाकाल की मूर्ति के आगे आँगन में रखी जाती है जिससे आरती में शामिल न होने वाले श्रृद्धालु भी कभी भी दर्शन के बाद भस्म पा सके।
यहाँ की एक भी तस्वीर लेने में पह असमर्थ रहे।
इसके बाद हम गए भीमबेटका जिसकी चर्चा अगले चिट्ठे में …..