Archive for भोपाल

झीलों की नगरी – भोपाल

भोपाल को झीलों की नगरी कहा जाता है पर ऐसा लगा नहीं। शाहपुर झील पर ठीक लगा.
वन विहार में अधिक आनन्द नहीं आया। गर्म मौसम  के कारण पशु-पक्षी जन्तु खुल कर बाहर विचरते नज़र नहीं आए –

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लेकिन जंगल से क्षेत्र में घूमना अच्छा लगा –

 

कुछ और आकर्षण भी रहे – राजा भोज सेतु अच्छा लगा और पानी में राजा भोज की मूर्ति भी –

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इसके अलावा कुछ स्थानों पर दीवारों पर उकेरी गई मध्य प्रदेश की संस्कृति की झलक भी अच्छी लगी –
इसके बाद हम हैदराबाद लौट आए।

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भीमबेटका – भीमबैठका

भोपाल के इस विशिष्ट स्थल का नाम कहीं भीमबेटका है कहीं भीमबैठका
पहाङों को काट कर बनाए गए शैलाश्रय ( रॉक शेल्टर ) है। अंतिम छोर पर पहाङ काट कर बनाई गई गुफा में वैष्णव देवी का मंदिर है –

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घूम-घूम कर विभिन्न शैलाश्रय हमने देखे। विभिन्न कलाकारों ने अपनी कला की छाप छोङी। एक पहाङी पर पत्थर उकेर कर केवल जंतुओं के चित्र बनाए गए जिससे इसे जंतु शैलाश्रय कहा जाता है –

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पत्थरों पर की गई विभिन्न चित्रकारी है,  इसके अलावा पहाङों को विशिष्ट आकार देते हुए भी काटा गया जैसे मगरमच्छ की तरह –

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इसके बाद हम गए वन विहार और नौका विहार करने जिसकी चर्चा अगले चिट्ठे में  …..

 

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महाकाल – उज्जैन

महाकाल का मंदिर स्थित है उज्जैन नगरी में। यहाँ दो ज्योतिर्लिंग है – महाकालेश्वर और ओंकारेश्वर
यहाँ हर समय श्रृद्दालुओं का तांता लगा रहता है। परिसर की कतार पार करने के बाद सीढिनुमा रास्ता पार कर हम ऊपर पहुँचते है। यहाँ रैलिंग से नीचे नंदी और शिवलिंग के स्पष्ट दर्शन हो जाते है। नीचे उतर कर सामने से दर्शन करना भीङ के कारण थोङा कठिन ही होता है।

परिसर में गर्भगृह में दुसरे ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर के दर्शन होते है। इसके अलावा विभिन्न गर्भगृहों में विभिन्न देवी-देवताओं साक्षी गणेश, गायत्री माँ, बृहस्पति देवता, नवग्रह के रूप में शिवलिंग के दर्शन किए जा सकते है।

प्रंगण में विशेष है महाकाल की मूर्ति – शिव जी जिनके बाईं ओर गोद में पार्वती और दाहिनी ओर त्रिशूल। सामने पात्रों में भस्म रखी है। यह भस्म तङके होने वाली भस्मारती की होती है। सुबह चार बजे होने वाली यह भस्म आरती ही महत्वपूर्ण मानी जाती है जिसमें शामिल होने के लिए रात एक बजे से श्रृद्धालु लाइन लगाते है। भस्म शमशान से आती है।  हर रोज़ शमशान से आनी वाली भस्म से पुरोहित आरती करते है और आरती की इस भस्म को इस तरह उङाया जाता है कि सभी श्रृद्धालुओं के सिर पर गिरे और आशिर्वाद मिले। यही भस्म महाकाल की मूर्ति के आगे आँगन में रखी जाती है जिससे आरती में शामिल न होने वाले श्रृद्धालु भी कभी भी दर्शन के बाद भस्म पा सके।

यहाँ की एक भी तस्वीर लेने में पह असमर्थ रहे।
इसके बाद हम गए भीमबेटका जिसकी चर्चा अगले चिट्ठे में  …..

 

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