बरसाना को छाता भी कहते है। वाकई यह स्थान छाता है। पौराणिक कथा के अनुसार जब इंद्र ने भारी बारिश की तब इंद्र का गर्व तोडने कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और इसके नीचे सभी ग्रामवासियों को संरक्षण मिला था। इसी कथा पर आधारित है यह मंदिर जो राधा रानी के मंदिर से 9 कि मी की दूरी पर है।
भीडभाड वाले इलाके में है यह मंदिर। यहाँ गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा भी की जाती है जो कुल 13 कि मी का मार्ग है जिसके रास्ते में राधा कुण्ड और कुछ और आगे सरोवर भी है। पूरा मार्ग पैदल न चल पाने पर बीच -बीच में छोटे रास्तो से भी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। पद्धति यह है कि परिक्रमा के बाद मंदिर जाया जाता है लेकिन बिना परिक्रमा के भी सीधे मंदिर जा सकते है।
यह है मंदिर का प्रवेश द्वार जिस पर गोवर्धन पर्वत उठाए कृष्ण और उनके आस पास नगर वासी देखे जा सकते है, बहुत सुन्दर शिल्पकारी है –
भीतर भी किनारे कुण्ड है जो राधा कुण्ड का दूसरा छोर हैं जिसके किनारे बना है मंदिर –
गर्भ गृह बीचो बीच है जिसमे गिरिराज किशोर के रूप में कृष्ण का आकार है जिस पर दमकती आँखे सजी है और पीछे मोर मुकुट, मूर्ती नहीं है। चारो ओर से बडे घेरे में घूमते हुए दर्शन किए गए जिससे परिक्रमा भी हो गई। महाप्रसाद भी यही पंडितजी द्वारा दिया जाता है।
इस तरह बरसाना की यात्रा पूरी कर हम वृन्दावन की ओर बढे जिसकी चर्चा अगले चिट्ठे में …..