ब्रह्म सरोवर जो वास्तव में यमुना नदी है। पौराणिक मान्यता के अनुसार और कुछ ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर माना जाता है कि यहाँ सरस्वती नदी थी जो लुप्त हो गई –

महाभारत के युद्ध के पश्चात पांडवों ने पवित्र स्नान किया था जिसकी स्मृति में इस पुल पर बना है कात्यायनी मन्दिर –

जिसमें हनुमान, राधा कृष्ण, पार्थ सारथी जैसे विभिन्न देवी-देवताओं के विभिन्न स्वरूपों की मूर्तियाँ है. पीछे बङे भूभाग में पार्थ सारथी का सुन्दर शिल्प बना है –

आगे है द्रौपदी मन्दिर –

यहाँ गर्भगृह में मुख्य मूर्ति खाटू श्याम ( बरबराक ) की है जिसके एक ओर माँ दुर्गा की मूर्ति है दूसरी ओर दाहिने हाथ मे सुदर्शन चक्र लिए कृष्ण है जिनके बाएं पार्श्व में अंगवस्त्र थामे द्रौपदी है, द्रौपदी का बायाँ हाथ आगे है जिस पर श्रृद्धालु साङी रखते है। श्रृद्धालुओं द्वारा चढ़ाई गई साङियों का ढ़ेर लगा था। यहाँ पुरोहित महिला है।
गर्भ गृह के पास सीढ़ियों से उतर कर नीचे जाने पर है द्रौपदी कूप. दुःशासन की छाती का लहू भीम से लेकर द्रौपदी ने अपने केश धोए थे जिसकी स्मृति में कुएँ के पास पत्थर कुछ लालीपन लिए है –

कुआँ सूखा है जिसमें श्रृद्धालु सिक्के डलते है.
इसके बाद हमने देखा कर्ण मन्दिर जिसकी चर्चा अगले चिट्ठे में ….