आज हिन्दी जगत के सुविख्यात गीतकार कवि और विविध भारती के जनक पंडित नरेंद्र शर्मा की पुण्यतिथि है।
सौ वर्ष पूरे हो चुके है, 1913 में 28 फरवरी के दिन उत्तर प्रदेश में पंडित नरेंद्र शर्मा जी का जन्म हुआ था. पण्डित नरेन्द्र शर्मा जी से मेरा परिचय स्कूल के दिनों में हुआ जब स्कूल में हम हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीखा करते थे। उन दिनों विविध भारती से एक गीत सुना करते थे – ज्योति कलश छलके … यह गीत बहुत अच्छा लगता था क्योंकि यह गीत उन गीतों जैसा लगता था जो हम संगीत की कक्षा में विभिन्न रागों में सीखते थे। बाद में विवरण भी सुनने लगे तब पता चला कि यह गीत पण्डित नरेन्द्र शर्मा का लिखा है जिसे लता मंगेशकर ने सुधीर फडके के संगीत निर्देशन में भाभी की चूडिया फिल्म के लिए गाया है।
नरेन्द्र शर्मा जी का दूसरा गीत मैंने सुना फिल्म सत्यम शिवम् सुन्दरम का शीर्षक गीत जो सुनने में बहुत अच्छा लगता रहा। बाद में जब साहित्य का अधिक अध्ययन करने लगे, यूनिवर्सिटी जाने लगे तब लगने लगा कि इस गीत का सही उपयोग नही किया गया। इसी दौर में गीतकार नरेन्द्र शर्मा जी को अधिक जानने का अवसर मिला। उनकी रचनाएं पढी और तब अक्सर भूले बिसरे गीत कार्यक्रम में कुछ गीतों के लिए गीतकार के रूप में उनका नाम सुना और बाद में यह भी पता चला कि विविध भारती के जनक पण्डित नरेन्द्र शर्मा जी ही है।
इस दौर में स्वाभाविक है कि फिल्म और साहित्य के साथ की भी चर्चा होती। तब लगने लगा कि फिल्म और साहित्य का साथ अक्सर होता है पर यह साथ निभना कठिन होता है। विशेष रूप से शुद्ध साहित्यिक धरातल पर लिखने वाले रचनाकारों के लिए फ़िल्मी डगर रोचक नही होती। फ़िल्मी गीत जन साधारण को ध्यान में रख कर लिखे जाते है इसीसे शुद्ध साहित्यिक गीतों को फिल्मो के लिए लेना फिल्मकारों के लिए जोखिम का काम है। एक दृष्टि हम नरेन्द्र शर्मा जी के फ़िल्मी काम पर डालते है तो लगता है कुछ फिल्मकारों के लिए नरेन्द्र शर्मा जी के गीत लेना जोखिम नही रहा। भाभी की चूडिया फिल्म के सभी गीत लोकप्रिय रहे यहाँ तक कि मीनाकुमारी जी पर फिल्माया गया यह गीत – लौ लगाती गीत गाती, इसके बोल देखिए –
आशा की पाँखुरी, श्वासों की बाँसुरी,
थाली ह्र्दय की ले, नित आरती सजाती
इसे पूजा अर्चना की तरह फिल्माया गया है। और रत्न घर फिल्म के इस लोकप्रिय गीत के बोल –
ऐसे है सुख सपन हमारे, ऐसी इन सपनों की माया
जल पर जैसे चांद की छाया, चांद किसी के हाथ न आया
चाहे जितना हाथ पसारे, ऐसे हैं सुख सपन हमारे….
न केवल भाभी की चूड़ियाँ जैसी फिल्म बल्कि अफसर जैसी व्यावसायिक फिल्म के लिए भी उनका लिखा गीत बेहद लोकप्रिय रहा और वो भी सुरैया की आवाज़ में उन्ही पर फिल्माया गाया – नैना दीवाने एक नही माने। कही बोल साधारण भी हो जाए तब भी भाव असाधारण रहे –
जाना ना जाना मन ही ना जाना, चितवन का मन बनता निशाना
कैसा निशाना कैसा निशाना, मन ही पहचाने ना, माने ना माने ना
नैना दीवाने
सुन्दर प्रतीक और बिम्ब का सहारा लेकर गीतों में भाव स्पष्ट किए जिससे न केवल सुनने में अपितु इन गीतों के अनुभव में अनूठापन रहा –
अम्बर कुमकुम कण बरसाये, फूल पँखुड़ियों पर मुस्काये
बिन्दु तुहिन जल के, ज्योति कलश छलके
हिन्दी के गौरवशाली साहित्यकार को सादर नमन !
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