महिला दिवस के अवसर पर एक पुस्तक पढ़ने का अवसर मिला – महिला सशक्तिकरण – सामाजिक एवं वैधानिक आरक्षण – चुनौतियाँ
यह पुस्तक इस विषय पर विभिन्न लेखों का संकलन एवं संपादन है। संपादक डॉ. हरिश्चन्द्र विद्यार्थी है। पढ़ कर लगा कि यह पुस्तक महिला सशक्तिकरण का केवल ढ़िंढ़ोरा नहीं पीट रही अपितु इस विषय की गहराई में जाते हुए सभी पहलुओं को देखती है। विशेष बात यह है कि कुल 42 लेखों और 5 कविताओं में से 15 के रचयिता पुरूष है। सभी ने इस विषय पर न केवल अपना मत रखा बल्कि तथ्य भी सामने रखे और महिला शक्ति के उदाहरण भी प्रस्तुत किए।
पूरी तरह से समझने के लिए इन लेखों को हम विभिन्न वर्गों में रख कर देखते है, लेकिन उससे पहले चर्चा करते है सम्पादकीय की जिसमें आंकणों के तथ्य दिए गए कि इस समय विश्व में महिलाओं की संख्या 2.6 अरब है और पिछले एक दशक में संख्या में आई एक करोङ सैंतीस लाख की कमी पर चिंता जताते हुए महिलाओं को अधिकार देने की वकालत की।
अब लेखों को देखते है विभिन्न वर्गों में। पहले चर्चा ङन लेखों की जो नारी को सांस्कृतिक धरातल पर देखना चाहते है। यहां नारी को भोग्या नहीं योग्य बनने की सलाह दी।
दूसरे वर्ग में दो लेख ऐसे है जो वैदिक काल की नारी की स्थिति को उत्तम बताते है। वेदों से दिए गए उदाहरणों से स्पष्ट हुआ कि कन्या का अर्थ है जिसकी कामना की जाती है लेकिन आगे समाज में विवाह संस्कार में परम्पराओं के नाम पर दहेज़ की आङ में धन को प्रमुखता दिए जाने से समाज में अब कन्या की परिभाषा ही समाप्त हो गई और कन्या अवांछित हो गई।
तीसरे वर्ग में ऐसे लेख है जिनमें इतिहास से महान महिलाओं और उनके सत् कार्यों का उल्लेख किया गया है – अवन्ति बाई, अहिल्या बाई होल्कर, दुर्गावती और स्वामी विवेकानन्द की नारी भावना का भी चित्रण है कि उन्हें महिलाओं के प्रति तिरस्कारपूर्ण व्यवहार को लेकर चिन्ता थी। उन्होनें हमेशा महिलाओं को निर्भीक होकर काम करने का संदेश दिया।
गौरवशाली नारी की परम्परा को जारी रखते हुए आगे के दौर की ऐसी ही महिलाओं के जीवन और काम का उल्लेख करते लेख चौथे वर्ग में है जिनमें चर्चा है – महिला सशक्तिकरण का साक्षात उदाहरण सावित्री बाई फूले, आज़ादी की दीवानी मीरा बेन, महिला चित्रकार अमृता शेरगिल, सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर, नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटेकर और दो ऐसी महिलाएं जिन्होने लीक से हटकर पुरूषों के माने जाने वाले क्षेत्र में काम किया – मिसाइल वूमेन डॉ. टेसी थॉमस जिनकी अग्नि 5 मिसाइल योजना में महत्वपूर्ण भूमिका है और दूर-दराज के गॉव में चरवाहे का काम करने वाली मल्लेश्वरी जो मीडिया की सफल कैमरामैन बनी। एक लेख में महादेवी वर्मा का संस्मरण है। इसके अतिरिक्त पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल का लखनऊ आईटी में छात्राओं को किया गया संबोधन भी शामिल है जिसमें महिलाओं को सशक्त बनने के लिए आह्वान किया गया है।
इस पुस्तक की विशेष बात यह रही कि इसमें पूरी ईमानदारी बरतते हुए महिलाओं के नकारात्मक आचरण को भी सामने लाया गया है जिसमें चर्चा है भ्रष्टाचारी महिलाओं की, शीर्षक भी ज़ोरदार दिया है – भ्रष्टाचार में महिलाओं ने भी बनाए है कीर्तिमान …. महिताओं के लिए काम में जुटी उच्च पदासीन महिला द्वारा महिलाओं के लिए की गई अभद्र टिप्पणी को भी चर्चा में स्थान दिया है।
पांचवें वर्ग में विचारोत्तेजक लेख सम्मिलिति है जिसमें बङे षडयंत्रों का शिकार बनी रूपम पाठक, मधुमिता शुक्ला, भंवरी देवी के मामले उठाए गए तो वहीं एक लेख में राजनीतिक क्षेत्र में विभिन्न छोटे-बङे स्तरों से महिलाओं को मिलने वाले सेवा के अवसर की भी चर्चा है।
महिलाओं की सुरक्षा, साक्षरता पर भी कलम चली है। छोटी लङकियों की समाज में दुर्दशा की चर्चा विभिन्न शहरों में घटी घटनाओं के माध्यम से की गई है। और भी कई छोटे-बङे विषयों पर लेख है जैसे कामकाजी महिलाओं का बिगङता स्वास्थ्य, महिलाओं को सम्पत्ति का अधिकार, माँ को प्रथम गार्जियन बनाने की वकालत। समाज में महिलाओं के बदलते स्वरूप पर भी चर्चा हुई और महिलाओं को भविष्य की ऊर्जा भी बताया है, नारी के अलौकिक गुणों की व्याख्या के साथ जन्मदात्री के रूप में मातृत्व यज्ञ की मार्मिक और सार्थक चर्चा हुई। कहना न होगा कि कन्या भ्रूण हत्या तो चर्चा में रहा ही। विभिन्न सर्वेक्षणों की रिपोर्टें भी प्रस्तुत की गई है जिनमें लिंग अनुपात, विश्व में महिलाओं के पिछङेपन के आंकङे है।
एक विशेष आकर्षण है, संपादन प्रबन्ध करते हुए जितेन्द्र प्रकाश जी द्वारा कुछ जानकारियाँ देना जैसे सोनोग्राफी की मशीनों का बढ़ना, सर्वेक्षण रिपोर्ट से जानकारी कि माँ की ओर झुके बेटे रिश्ते निभाने में कुशल, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर की माँ का प्रेरक प्रसंग, लङकियों को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण, उपग्रह केन्द्र के रिसेट 1 की महिला परियोजना निदेशक, पटना में लङकियों में शिक्षा की अलख जगाने वाली साइकिल दीदी, अरविन्द की शिष्या मीरा अल्फ़ाज़ा के साथ राष्ट्र सेविका समिति, राष्ट्रीय महिला मोर्चा से संबंधित जानकारी भी है।
कुल मिलाकर यह पुस्तक महिलाओं से संबंधित हर संभावित क्षेत्र को छूती है और बिना किसी पूर्वाग्रह के अच्छे-बुरे दोनों पक्षों को उभारते हुए आवश्यकता के अनुसार सलाह भी देती है।
उमेश कुमार said
” गागर में सागर”…. अति सुन्दर अभिव्यक्ति।
http://safaltasutra.com/