इस अनोखे नरसिंह भगवान् की जानकारी अछि लगी. वैसे आपका अनुमान सही लगता है की पनका कहीं न कहीं तो जाता ही होगा. विजयवाड़ा में पहाड़ियों पर जो बसावट दिख रही है यह बहुत अधिक पूरानी नहीं है. आज से पचास साल पहले तक सभी पहाड़ियां अछूती थीं. हाँ communist पार्टी का वहां बड़ा जोर था और हर पहाड़ी पर उनका प्रतीक चिन्ह हंसिया और हथोडा बना रहता था.
सुब्रह्मण्यम जी, आपने सही कहा, विजयवाड़ा की पहाडियों पर बनावट पुरानी नही हैं. पहले यह मंदिर नही था केवल मूर्ति थी. पीछे घना जंगल था जहां से जंगली जानवर यहाँ आते थे. गाँव के गरीब लोग गुड के पानी का पनका ही चढाते थे, पर यह पता नही मक्खियाँ और चीटियाँ क्यों नही आती. मान्यता इतनी फैली की आसपास के गाँव से लोग आने लगे जिससे छोटा सा मंदिर जैसा बना दिया गया था पर जंगली जानवरों के भय से शाम में चार बजे मंदिर बंद हो जाता था. बाद में अच्छा विकास यहाँ किया गया, अब तो दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं.
पा.ना. सुब्रमणियन said
इस अनोखे नरसिंह भगवान् की जानकारी अछि लगी. वैसे आपका अनुमान सही लगता है की पनका कहीं न कहीं तो जाता ही होगा. विजयवाड़ा में पहाड़ियों पर जो बसावट दिख रही है यह बहुत अधिक पूरानी नहीं है. आज से पचास साल पहले तक सभी पहाड़ियां अछूती थीं. हाँ communist पार्टी का वहां बड़ा जोर था और हर पहाड़ी पर उनका प्रतीक चिन्ह हंसिया और हथोडा बना रहता था.
Manish Kumar said
बेहतरीन लगा आपका ये विवरण। विशेषकर पनका और चीटियों मक्खियों की अनुपस्थिति वाली बात रोचक लगी।
anug said
मनीष जी शुक्रिया !
सुब्रह्मण्यम जी, आपने सही कहा, विजयवाड़ा की पहाडियों पर बनावट पुरानी नही हैं. पहले यह मंदिर नही था केवल मूर्ति थी. पीछे घना जंगल था जहां से जंगली जानवर यहाँ आते थे. गाँव के गरीब लोग गुड के पानी का पनका ही चढाते थे, पर यह पता नही मक्खियाँ और चीटियाँ क्यों नही आती. मान्यता इतनी फैली की आसपास के गाँव से लोग आने लगे जिससे छोटा सा मंदिर जैसा बना दिया गया था पर जंगली जानवरों के भय से शाम में चार बजे मंदिर बंद हो जाता था. बाद में अच्छा विकास यहाँ किया गया, अब तो दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं.
अजित वडनेरकर said
बहुत अच्छी लगा यह यात्रा वृत्तान्त
mahesh said
good
balu shatgopamwar said
I am very pleased to hear about the Narsimha bhagwan.Thanks